आजचा विशेष

श्री स्वामी समर्थ

आजचा सुविचार : जगात दुसऱ्याला हसणे सोपे परंतु दुसऱ्यासाठी रडणे कठीण....

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देवा एकच मागणी
तिची पापणी भरु दे
माझ्या नावाचा एकच थेंब
तिच्या नयनी तरु दे

-- आनंद काळे


बालभारतीच्या कविता आनंदक्षणवर वाचण्यास मिळाव्यात, या वाचकांच्या विनंतीला मान देऊन पुढील काही पोस्ट या बालभारतीच्या निवडक आणि आवडत्या कवितांच्या असतिल.

Wednesday, February 13, 2008

सकाळी उठावे | सुसाट सुटावे |
ऑफिस गाठावे | कैसेतरी ||

इच्छा गं छाटाव्या | पोळ्या अन् लाटाव्या |
वेळाही गाठाव्या | सगळ्यांच्या ||

चढावे बशीत | गर्दीत घुशीत |
रोज या मुशीत | कुटताना ||

धक्के ते मुद्दाम | नजरा उद्दाम |
गाठण्या मुक्काम | सोस बये! ||

उशीर अटल | चुकता लोकल |
जीवही विकल | संभ्रमित ||

लागते टोचणी | भिजते पापणी |
जावे का याक्षणी | तान्ह्याकडे? ||

मस्टर धोक्यात | छकुला डोक्यात |
आयुष्य ठेक्यात | बसेचिना ||

रोजची टुकार | कामे ती भिकार |
बंड तू पुकार | बुद्धी म्हणे ||

एक तो 'वीकांत' | एरव्ही आकांत |
समय निवांत | मिळेचिना ||

तेव्हाही आराम | असतो हराम |
कामे ती तमाम | उरकावी ||

लावून झापड | शिवावे कापड |
तळावे पापड | निगुतीने ||

कामसू सचिव | सखीही रेखीव |
गृहिणी आजीव | प्रियशिष्या ||

काया रे शिणते | मनही कण्हते |
कुणी का गणते | श्रम माझे? ||

नित्याची कहाणी | मनात विराणी |
जनांत गार्हाणीं | सांगो नये ||

पेचात पडतो | प्रश्नांत बुडतो |
जीव हा कुढतो | वारंवार ||

"अशी का विरक्त? | व्हावे मी उन्मुक्त |
जीव ज्या आसक्त | ते शोधावे ||

प्रपंच सगळा | सोडूनि वेगळा |
एखादा आगळा | ध्यास घेई ||

तारा मी छेडाव्या | निराशा खुडाव्या |
काळज्या उडाव्या | दिगंतरी ||"

अंगाला टेकत | लेकरु भेकत |
आणते खेचत | भुईवर ||

उशीर जाहला | जीव हा गुंतला |
प्रपंची वेढला | चहूबाजूं ||

कल्पना सारुन | मनाला मारून |
वास्तव दारुण | स्वीकारते ||

बंधने झेलावी | चाकोरी पेलावी |
वाट ती चालावी| 'रुळ'लेली ||

विसर विचार | रोजचे आचार |
होऊनि लाचार | उरकावे ||

काही मागणे | केवळ भोगणे |
रोजचे जगणे | विनाशल्य ||

हा जन्म बिकट | गेलासे फुकट |
हाकण्या शकट | संसाराचा ||

तरीही अखंड | आशा ही अभंग |
मनी अनिर्बंध | तेवतसे ||

ठेवा तो सुखाचा | निर्व्याज स्मिताचा |
विसर जगाचा | पाडी झणीं ||

जातील दिवस | निराश निरस |
झडेल विरस | आयुष्याचा ||

खरी की आभासी | आशा ही जिवासी |
बळ अविनाशी | देई खरे ||

पुनश्च हासून | पदर खोचून |
देई ती झोकून | हुरुपाने ||

-- नंदन होडावडेकर
http://marathisahitya.blogspot.com/

2 comments:

सर्किट said...

mala vatate, fakt nandan lihine purese nahi. tyache poorna naav Nandan Hodavadekar lihun tyachya blog chi link hi dyayala pahije hoti.

i hope you had taken his permission before reproducing his poem here.

Anand Kale said...

Sarkit Rao...
Maf karave..ghaiigadabadit aadhi te rahun gele... update kele aahe..

Anakhin ek chuki jhalich... mi aadhi permission nahi ghetali... kahi problem hot asel yaane tar kalavave...

he majhe collection aahe fakt..